पर्वत निर्माण की तीनों अवस्थाओं का विस्तार से वर्णन करें। Parvat nirman ke teen avasthaon ka vistar se varnan karen

पर्वत निर्माण की तीनों अवस्थाओं का विस्तार से वर्णन करें।


सवाल: पर्वत निर्माण की तीनों अवस्थाओं का विस्तार से वर्णन करें।

पर्वत निर्माण एक नैदानिक प्रक्रिया है जिसमें पृथ्वी के ऊपरी परत के निचले भाग में बड़े और स्थायी पर्वतों का निर्माण होता है। यह प्रक्रिया विभिन्न अवस्थाओं में विभाजित होती है, जिन्हें पर्वत निर्माण की तीन अवस्थाएं कहा जाता हैं: जठार, विकीर्ण, और उत्तान।


पहली अवस्था है जठार, जिसमें बारिश, नदीजल, बांध, और भूस्खलन जैसे प्राकृतिक कारकों के प्रभाव से ऊर्ध्वाधर उच्चता में विपरीत गति होती है। इसमें पत्थर, रेत, और कच्चे बालू के तटस्थ भागों का उच्चारण होता है जो पर्वत निर्माण की शुरुआत का प्रतीत होता है। यह अवस्था दीर्घकालिक और स्थिर होती है।


दूसरी अवस्था है विकीर्ण, जिसमें पहली अवस्था में उत्पन्न हुए तटस्थ भागों का भ्रमण और खंडहरण होता है। इसमें मार्ग गति से अथवा नदी और हवा के प्रभाव से भगदड़ होती है, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न तत्व तटस्थ भागों से हटकर इकट्ठा होते हैं। यह अवस्था उच्च गतिशीलता और गतिशील परिस्थितियों के लिए प्रसिद्ध होती है।


तीसरी और अंतिम अवस्था है उत्तान, जिसमें विकीर्ण अवस्था में उत्पन्न हुए तत्वों का एकीकरण होता है। यह अवस्था धीमी गति से होती है और विभिन्न तत्वों को संपूर्ण रूप में पर्वत की रूपरेखा में व्यवस्थित करती है। इस प्रक्रिया में पर्वत अपनी अंतिम रूप में स्थिर होता है और उसकी ऊँचाई तय हो जाती है।


यथार्थ में, पर्वत निर्माण एक समय-लगने वाली और विस्तृत प्रक्रिया है जिसमें प्राकृतिक कारकों और भूमि के विभिन्न प्रभावों के संयोग से पर्वतों का निर्माण होता है। यह तीनों अवस्थाओं में विभाजित होता है जो विभिन्न प्रकार के गतिशीलता, प्रस्थान, और एकीकरण का प्रतिनिधित्व करते हैं।

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